मिड-डे मील योजना से शिक्षा का स्तर नहीं हो पाया ऊंचा

मुकेरियां: सर्व शिक्षा अभियान द्वारा मिड-डे मील योजना पर अरबों रुपए व्यय किए जा रहे हैं। सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त, गैर-सरकारी स्कूल विद्यालय कम, भोजनालय कक्ष अधिक दिखाई दे रहे हैं। दोपहर भोजन की व्यवस्था की बजाय स्कूलों में कक्षा कमरों, चारदीवारी, पेयजल, शौचालय एवं विद्यार्थियों को बैठने के लिए बैंच व डैस्क आदि आधुनिक शैली के अनुसार सभी कुछ उपलब्ध करवाया जाता तो सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षा का स्तर और ऊंचा हो सकता है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार कंडी क्षेत्र में बहुत कम स्कूल होंगे जिनमें उपरोक्त सभी सुविधाएं प्राप्त हों अन्यथा लगभग सभी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार कक्षा कक्ष नहीं हैं। पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कम्प्यूटर कक्ष तथा सुविधाजनक शौचालय नहीं हैं। दूसरी ओर मिड-डे मील योजना पर अरबों रुपए व्यय हो रहे हैं। विद्यार्थियों के अभिभावकों से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि उक्त योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है।

हम तो बच्चों को स्कूलों में विद्या ग्रहण करने के लिए भेजते हैं न कि भोजन हेतु। इस योजना पर व्यय हो रहे धन को स्कूलों में रिक्त पड़े अध्यापकों, प्राध्यापकों के पदों को भरने हेतु प्रयोग किया जाता तो लगातार शिक्षा के नाम पर खुल रही दुकानों आदि पर अंकुश लगता और सरकारी स्कूलों में दिन-प्रतिदिन कम हो रही छात्र-छात्राओं की संख्या पर भी रोक लगती। उल्लेखनीय है कि मिड-डे मील योजना को सरकार बड़ी कठोरता से सुचारू रूप से चला रही है। अध्यापक पढ़ाने में कम, भोजन बनवाने में अधिक ध्यान दे रहे हैं।

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